बिलासपुर। प्रदेश में आदिवासी बहुल क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधा के नाम पर केवल कागजों में ही काम चल रहा है। वास्तविकता यह है कि यहां पदस्थापना के बावजूद ना तो डॉक्टर काम पर आ रहे हैं। और ना ही RMA उपस्थित रहते है। केवल संविदा CHO के भरोसे आदिवासी बहुल क्षेत्र में उपचार किया जा रहा है। इसमें भी उपचार के तत्काल बाद मरीज को प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से रेफर कर दिया जा रहा है। जिसके कारण बेहतर उपचार के लिए मरीजों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। ताजा मामला बिलासपुर जिले के कोटा विधानसभा के अंतिम छोर पर मौजूद गांव आमागोहन प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र का है।
जहा मरीज गंगोत्री गोड़ पति संदीप कुमार 27 वर्ष अपने उपचार के लिए यहां पहुची तो यहां ना तो एमबीबीएस डॉक्टर मौजूद थे। ना ही प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के आरएमए मरीज का उपचार संविदा सीएचओ ने संभाला उन्होंने भी प्राथमिक उपचार के बाद मरीज को प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र आमगोहन से सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र कोटा के लिए रेफर कर दिया। मरीज के रेफर पर्ची में सीएचओ का हस्ताक्षर भी मौजूद है। जो यह स्पष्ट बताता है कि प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र आमागोहन में एमबीबीएस डॉक्टर की पदस्थापना के बाद भी वह यहां ड्यूटी पर मौजूद नहीं थे। सीएचओ का हस्ताक्षर यह भी प्रतीत करता है कि यहां के आरएमए भी कार्य पर उपस्थित नहीं थे। जबकि आदिवासी क्षेत्र में शासन ने विशेष रूप से डाक्टरों की नियुक्ति की है। ताकि प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के नजदीक रहकर डॉक्टर अपनी सेवा दे ।

CHO के इस कृत्य की जांच होनी भी जरूरी…
प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में पहुंचे मरीज का इलाज CHO द्वारा किया जाना भी अपने आप मे बड़ा सवाल है। क्या ? CHO को शासन ने ईलाज करने की अनुमति दी है और अगर नहीं दिया है तो सिर्फ CHO द्वारा एक डॉक्टर के पर्ची पर मरीज को दवाई किसने लिखी? और मरीज को रैफर कर हस्ताक्षर कैसे किया गया इसकी जांच हो ताकि यह भी स्पष्ट हो कि स्वास्थ्य केंद्र में डॉक्टर नहीं कर्मचारी ही इलाज कर रहे हैं।
ट्रांसफर नीति में भी यह प्रयोजन..
ट्राइबल क्षेत्र से तब तक किसी कर्मचारी का तबादला नहीं हो सकता जब तक उसके बदले कोई दूसरा कर्मचारी वहां ना आ जाए। इसके बाद भी जिले के आदिवासी क्षेत्र में पदस्थापना के बाद डॉक्टर वहां ड्यूटी करने नहीं जा रहे हैं। जिसके कारण आदिवासी बहुल क्षेत्र के मरीजों को समय पर उपचार नहीं मिल रहा है और उन्हें इलाज कराने के लिए परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।
शहरी क्षेत्र में नियम विरुद्ध कर्मचारी हो गए हैं अटैच
आदिवासी क्षेत्र में पदस्थापना के बाद भी वहां डॉक्टरों के अलावा कर्मचारी सेवा नहीं देना चाहते हैं। ऐसे में अपनी पहुंच और पैसों के बल पर आदिवासी बहुल क्षेत्र के बजाय शहरी क्षेत्र में कर्मचारी नियम विरुद्ध अटैच है। आमागोह प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के ही सहायक ग्रेड -3 शशांक वर्मा पिछले 4 महीनों से बिलासपुर स्थित सीएमएचओ कार्यालय में अटैच होकर कार्य कर रहे हैं। इनके अलावा कई स्टाफ नर्स और अन्य कर्मचारी भी शहर के अलग-अलग जगहों में अटैच है।