संघ के शताब्दी वर्ष पर डॉ. भागवत ने स्वयंसेवकों के कर्तव्यों पर डाला प्रकाश
स्व. काशीनाथ गोरे के स्मारिका में पत्रिका का किया विमोचन
बिलासपुर। संपूर्ण विश्व के लिए प्रेम और कल्याण को प्राथमिकता में रखने वाला एक सच्चा स्वयंसेवक होता है। संघ की शाखा में बिताए 1 घंटे के समय जो सीख मिलती है उसे दिन के 24 घंटे में स्मरण कर व्यक्तित्व में लाने वाला स्वयंसेवक होता है। यह बातें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने बिलासपुर के सिम्स ऑडिटोरियम में आयोजित लोकहितकारी काशीनाथ गोरे के स्मारिका विमोचन कार्यक्रम के दौरान कही।

उन्होंने अपने 19 मिनट के उद्बोधन में संघ के शताब्दी वर्ष पूर्ण होने और एक स्वयंसेवक के कर्तव्यों के बारे में प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि स्व प्रेरणा से माता की सेवा करने का प्रण धारण करने और अपने आचरण से लोगों को प्रभावित करने का व्यक्तित्व स्वयंसेवक में होना चाहिए। डॉ. केशव राव बलीराम हेडगेवार को याद करते हुए कहा कि यदि संघ की स्थापना के समय हेडगेवार लोगों के साथ मिलकर काम नहीं करते, सभी को साथ लेकर नहीं चलते और स्वयं को अलौकिक मानते हुए लोगों से दूरी बना लेते तो आज संघ का परिवार इतना बड़ा नहीं होता। उनके व्यक्तित्व से सीखने की जरूरत है।
00 काशीनाथ की कीर्ति सदैव बनी रहेगी
बिलासपुर के स्वयंसेवक रहे स्व. काशीनाथ गोरे के बारे में उन्होंने कहा कि ऐसा एक भी बार नहीं हुआ जब मैं बिलासपुर आया और उनसे मिलने और बात करने का अवसर न मिला हो। लेकिन प्रथम बार है कि वो हमारे बीच शारीरिक रूप से मौजूद नहीं हैं। लेकिन उनकी कीर्ति सदैव बनी रहेगी। वो एक ऐसे स्वयंसेवक थे जिन्होंने संघ के विस्तार को लेकर हमेशा कार्य किया। शासकीय सेवा में रहते हुए भी संघ को पूरा समय दिया।