स्कूली बच्चों की सुरक्षा से खिलवाड़,हादसे के बाद भी नहीं जागा परिवहन विभाग

बिलासपुर। स्कूली बच्चों के परिवहन में लगे अनेक वाहनों में सुरक्षा मानकों की अनदेखी हो रही है। समय-समय पर एवं नियमित रूप से की जाने वाली जांच भले ही कागजों में नजर आती हो लेकिन हकीकत में यह तब दिखता है जब कोई घटना घट जाती है। पूर्व की घटनाओं को लेकर परिवहन विभाग के अधिकारी और मैदानी कर्मचारी भी सबक नहीं लेते बल्कि हादसे के होने का इंतजार करते हैं। ऐसे में वे स्कूल प्रबंधन अपने आपको ठगा महसूस करते हैं जो नियमों के मामले में अप टू डेट रहते हैं लेकिन नियमों का हवाला देकर उन्हें भी चमकाने से अमला बाज नहीं आता, और जो अनदेखी कर रहे हैं उनकी दुकानदारी चलती रहती है।

कुछ दिनों पहले कांकेर जिले के भानुप्रतापपुर के पास कोरर में ऐसी ही एक लपरवाही के कारण 7 बच्चों को जान चली गई थी। इस तरह की घटना के बाद परिवहन विभाग और उसके उड़नदस्ता की टीम अभी ताकि नींद से जागी नहीं हैं। बिलासपुर जिले के कई निजी स्कूल के वाहनों की जांच अभी तक नहीं हो पाई है। पिछली बार जब परिवहन विभाग ने स्कूल ब्शु की जांच पड़ताल की थी तो उस दौरान भी बसें बिना परमिट के चलना पाया गया। फर्स्ट एड बॉक्स भी नहीं मिला। स्कूल बस के रूप में संचालित होने के लिए बसों में जरूरी सुरक्षा संसाधन और सामग्रियों की कमी पाई गई।लेकिन कोई ठोस कार्यवाही नहीं की गई जिसके चलते अभी भी ये वाहन सड़को पर दौड़ रहे है।

ऑटो की नहीं की जा रही जांच ओवर लोड सवारी जान खतरे में

जिला ऑटो संघ के द्वारा भी एक निर्देश जारी कर समस्त ऑटो चालकों से अपील की गई है कि वे अपने वाहनों में ओवरलोड याने की क्षमता से ज्यादा सवारी न बिठायें, नियमों का पालन करें और इसके बाद यदि उल्लंघन पर कार्रवाई होती है तो उसके लिए स्वयं ऑटो चालक जिम्मेदार होगा लेकिन ऐसा कुछ भी होता नजर नहीं आ रहा जिससे लगे कि संघ के निर्देश का पालन हो रहा है या फिर यातायात विभाग की सख्ती ऐसे लोगों पर दिख रही हो। परिवहन विभाग जिसका काम है कि वह यातायात नियमों का पालन कराए, वाहनों के फिटनेस आदि की समय-समय पर जांच करें लेकिन परिवहन विभाग के जिला अधिकारी ना तो दफ्तर में मिलते हैं और नहीं फोन उठाते हैं। जिससे कि यह पता चल सके कि उन्होंने ऐसे लापरवाह लोगों पर किस तरह कार्रवाई करने की योजना बनाई है और क्या कार्रवाई कर रहे हैं।
बाबूओं के भरोसे आरटीओ दफ्तर संचालित हो रहा है। अधिकारी को बात करने तक की फुर्सत नहीं है।

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