सत्य,अहिंसा और करूणा के देवदूत थे महात्मा बुद्ध..

मनोज कुमार सिंह- सोवियत रूस और यूक्रेन के मध्य चल रहे भीषण युद्ध और इस युद्ध को रोकने के प्रयासों के मद्देनजर आज से ढाई हजार साल पहले महात्मा बुद्ध द्वारा प्रतिपादित पंचशील का सिद्धांत प्रासंगिक होने लगता है। व्यक्तिगत , सामाजिक और राजनीतिक जीवन को सुख्मय, शाॅतिमय, और ज्योतिर्मय बनाने के लिए महात्मा बुद्ध ने सर्वप्रथम सारनाथ में पंचशील का उपदेश दिया था । बसुन्धरा के प्रत्येक व्यक्ति द्वारा पंचशील के सिद्धांतों का ईमानदारी और श्रद्धापूर्वक पालन करने से स्वस्थ, समरस, सहिष्णु और सबके रहने लायक समाज और संसार बनाया जा सकता हैं।

इस तरह भारत में प्रथम सामाजिक क्रांति के प्रणेता युग प्रवर्तक महात्मा बुद्ध के कालजयी विचार और दर्शन वैश्विक मानवता को सर्वदा और सर्वत्र राह दिखाते रहेंगे। त्याग, तपस्याओं और साधनाओं के फलस्वरूप प्राप्त ज्ञान ,दर्शन और विचार सार्वभौमिक और सर्वकालिक होते हैं तथा उसकी की गूंज और गंध दूर गगन तक लोकमानास में युगों-युगों तक कायम रहती है। अब से लगभग ढाई हजार वर्ष पूर्व मानवता को सुरक्षित,संरक्षित और भलीभाँति संचालित करने के लिए महात्मा बुद्ध ने जो ज्ञान, दर्शन और विचार दिया उसकी गूंज से आज भी सम्पूर्ण विश्व अनुगूँजित हो रहा है और उसकी सुगंध से सारा वातावरण आज भी महक रहा है ।

अपने इकलौते बेटे को अपने राज-पाठ का उत्तराधिकारी के साथ साथ चक्रवर्ती सम्राट बनाने की प्रबल इच्छा रखने वाले राजा शुद्धोधन को ज्योतिषाचार्यो की सिद्धार्थ के संन्यासी बनने की भविष्यवाणी ने बुरी तरह भयभीत कर दिया। इसलिए राज-पाट का मोह रखने वाले राजा ने बालक सिद्धार्थ के पालन पोषण में और राजसी गुणों के अनुरूप शिक्षित प्रशिक्षित करने के लिए कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। बेटे सिद्धार्थ के मन में वैराग्य और सन्यास का भाव कभी उत्पन्न न होने पाए इसके लिए राजा शुद्धोधन ने यथाशक्ति प्रयास किये । बालक सिद्धार्थ का मन भोग-विलास और सांसारिक जीवन में रमा रहे इसके लिए राजा ने ॠतुओ को ध्यान में रखकर महल बनवाये। परन्तु रोती बिखलती निराश हताश मनुष्यता के हृदय में आशा विश्वास और उम्मीद की दीपशिखाऐं ( आत्मदीपो भव) प्रज्वलित करने की उत्कट अभिलाषा रखने वाले सिद्धार्थ के मन को राजमहल की भव्यता विलासिता और उसका ऐश्वर्य तनिक भी नहीं भाया सुहाया। एक पिता की दृष्टि से राजा शुद्धोधन ने अपने पुत्र की प्रतिभा और विलक्षणता को कभी जानने समझने का प्रयास ही नहीं किया बल्कि हर पल एक राजा की तरह अपने पुत्र में अपने राज पाट का उत्तराधिकारी देखते रहे।

इसलिए परम्परागत राजसी रंग ढंग में सिद्धार्थ को ढालने के लिए राजा शुद्धोधन ने राज दरबार को नृत्य संगीत और अन्य मनमोहक मनोरंजन के विविध संसाधनों और सामग्रियों से सुसज्जित कर दिया । सिद्धार्थ के भरपूर मनोरंजन के लिए उस दौर के देश भर के संगीतज्ञ और नृत्यांगनाए बुलाई गई। परन्तु संगीत की स्वरलहरियों और वीणा और अन्य वाद्ययंत्रों की झंकारों में सिद्धार्थ को चीखों चिल्लाहटों आहों और कराहों के शोर सुनाई दे रहें थे। सुन्दरियों का सौन्दर्य और नृत्यांगनाओं की मनमोहक अदाएं भी सिद्धार्थ के मन को नहीं रिझा पाई । सिद्धार्थ के बचपन की घटनाओं का गम्भीरता से अध्ययन किया जाए तो ज्ञात होता है कि- उनका हृदय बचपन से ही प्रेम, परोपकार, दया और करूणा से परिपूर्ण था। उनके हृदय में शोषित उत्पीडित और दुखित जनता का दुःख दर्द दूर करने की गहरी बेचैनी तडप और व्याकुलता हिलोरे ले रही थी।

इसलिए अपने सारथी चेन्ना के साथ भ्रमण करते समय क्रमशः तीन दृश्यों वृद्ध ,रोगी और शवयात्रा को देखकर अत्यंत विचलित और व्यथित हुए तथा गृहस्थ जीवन त्याग कर सन्यास लेने का कठिन निर्णय लिया। इन दृश्यों ने सिद्धार्थ के मन मस्तिष्क और हृदय को उद्वेलित कर दिया। महात्मा बुद्ध का हृदय मानव जीवन की सच्चाईयों और वास्तविकताओं से साक्षात्कार करने के लिए व्यग्र और व्याकुल हो उठा तथा करूणा के अथाह सागर में पूरी तरह डूबी उनकी आंखों में वह समंदर तैरने लगा जो रोती विलखती चीखती मानवता के आंसुओं से एकत्रित कर बना था। तदुपरांत व्यथित सिद्धार्थ ने उन्तीस वर्ष की उम्र में अपनी अत्यंत सुन्दर पत्नी यशोधरा और दुधमुंहे बेटे राहुल को रात के सन्नाटे में छोड़कर दुःख दर्द का कारण और दुःख दर्द को दूर करने का सर्वाधिक कारगर और सर्वव्यापी औजार खोजने के लिये निकल पड़े। बौद्ध साहित्य और बौद्ध इतिहास में इस घटना को महाभिनिष्क्रमण कहा जाता हैं।

अततः बारह वर्ष की कठिन साधना के बाद निरंजना नदी के तट पर शाक्य गणराज्य के राजा शुद्धोधन का इकलौता बेटा सिद्धार्थ बोधि वृक्ष के नीचे दिव्य ज्ञान प्राप्त कर महात्मा बुद्ध बन गया। एक राजा के बेटे में यह परिवर्तन महज एक व्यक्तित्व का परिवर्तन नहीं था बल्कि यह परिवर्तन मानवता की दृष्टि से मील का पत्थर साबित हुआ। महात्मा बुद्ध ने बोधगया में जो ज्ञान प्राप्त किया उसके प्रताप के समक्ष पूरी दुनिया नतमस्तक हूई और उस ज्ञान की रोशनी से सारी मानवता आज भी रोशनगर्द हो रही हैं। महात्मा बुद्ध के शुद्ध अंतःकरण से उपजे विचार और दर्शन भविष्य में भारतीय बसुन्धरा पर होने अनगिनत सामाजिक परिवर्तनो, सामाजिक सुधारों और सामाजिक क्रांतिओं की आधारशिला बने। चार्वाक दार्शनिकों को छोड़कर महात्मा बुद्ध के पूर्ववर्ती कुछ दार्शनिकों ने मानव जीवन को तुच्छ , क्षणभंगुर और नश्वर बताया था परन्तु महात्मा बुद्ध ने अपने क्षणिकवाद के दर्शन द्वारा मानव जीवन के हर क्षण की महत्ता को रेखांकित किया था। क्षणिकवाद के अनुसार मनुष्य का व्यक्तित्व हर क्षण बदलता है जिस तरह से दीपक की लौ प्रतिक्षण बदलती रहती हैं और जैसे नदी की जलधारा प्रतिक्षण बदलती रहती हैं उसी तरह मानव जीवन भी प्रतिक्षण बदलता रहता है ।

इसके साथ महात्मा बुद्ध ने जीवन को क्षणभंगुरता पाठ पढाने वाले विचारकों को करारा जवाब देते हुए विचार दिया था कि- एक क्षण मात्र में सदियों का इतिहास बनाने और बदलने की सामर्थ्य होती हैं। इसलिए हर इंसान को अपने जीवन के हर क्षण को पूरे उत्साह उर्जा और उल्लास के साथ जीना चाहिए। प्रकारांतर से मनुष्य के जीवन का हर क्षण मत्वपूर्ण और मूल्यवान हैं। लोक- जीवन में सुख, शांति और समृद्धि सर्वदा कायम करने के लिए महात्मा बुद्ध ने पंचशील अर्थात मनुष्य के आचरण के पाॅच सिद्धांत ( सत्य, अहिंसा, अपरिग्र्ह अचौर्य और ब्रह्मचर्य ) प्रस्तुत किया। महात्मा बुद्ध के इसी पंचशील के सिद्धांत को राजनीतिक रूप से संशोधित कर भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने वैश्विक रंगमंच पर प्रस्तुत किया। पंडित नेहरू ने विश्व शांति और शांतिपूर्ण सह अस्तित्व को ध्यान में रखकर प्रत्येक राष्ट्र के आचरण के सिद्धांत के रूप मे विकसित किया। पंडित नेहरू के प्रत्येक राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय संबंधों का निर्वहन करते समय पंचशील के सिद्धांत ( अनाक्रमण, अहस्तक्षेप , एक दूसरे की सम्प्रभुता और अखंडता का आदर करना, सभी देशों के साथ समानता का व्यवहार करना तथा शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व) का पालन करे तो विश्व में कोई तनाव और विवाद शेष नहीं रह जायेगा। कालांतर में द्विपक्षीय और बहुपक्षीय संबधो और संधियों की दृष्टि से पंचशील का सिद्धांत मील का पत्थर साबित हुआ। सर्वप्रथम तिब्बत से जुड़े एक समझौते में भारत के प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और चीन प्रधानमंत्री चाऊ एन लाई ने 1954 मे पंचशील के सिद्धांतों का पूरी तरह से पालन करने के लिए समझौता किया। कालान्तर में एशिया और अफ्रीका के लगभग सभी देशों ने अन्तर्राष्ट्रीय संबंधो और संधियों की दृष्टि से पंचशील के सिद्धांत को स्वीकार कर लिया। विश्व शांति और विश्व बंधुत्व की स्थापना में पंचशील का सिद्धांत अत्यंत लोकप्रिय और कारगर सिद्धांत बन गया जो अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में भारत की महत्वपूर्ण देन हैं।

महात्मा बुद्ध ने नकरात्मक अहिंसा की जगह सकारात्मक अंहिसा का विचार प्रस्तुत किया। जो नैतिक, आध्यात्मिक और सामाजिक दृष्टि से व्यापक तथा दया, करूणा और परोपकार के उत्कृष्ट हृदयानुभूति से परिपूर्ण है। अहिंसा के विचार से न केवल मानवता की रक्षा की अपितु भारत में खेती किसानी को भी बचाने का श्लाघनीय प्रयास किया। महात्मा बुद्ध के मन मस्तिष्क में अहिंसा का विचार मात्र उनके अंतःकरण से उपजा हुआ विचार नहीं था बल्कि उस समय की परिस्थितियों की कोख से उपजा विचार भी था। क्योंकि उत्तर वैदिक काल में कर्मकाण्ड और पाखंड अपनी पराकाष्ठा पर पहुंच गये थे । जो पशु खेती किसानी के कार्यों में मनुष्य के सहायक हो सकते थे उनकी पुण्य प्राप्ति के लिए यज्ञवेदियों पर निर्ममता से बलि दे दी जाती थी। महात्मा बुद्ध ने अपने अहिंसा के महान विचार द्वारा न केवल घृणित और घिनौनी बलि प्रथा पर लगाम लगाई बल्कि भारत की खेती किसानी को भी बचाने का प्रयास किया। उत्तर वैदिक काल तक आते-आते भारतीय समाज में अनगिनत कुरीतियां और कुप्रथाए समाहित हो गई थी और भारतीय समाज बुरी तरह विभाजित, विखंडित और विश्रृखंलित हो चुका था। ऐसे समय में सामाजिक जन जीवन में सृजनात्मक, सकारात्मक और रचनात्मक सोच तथा वैज्ञानिक दृष्टिकोण उत्पन्न कर तथा दया करूणा परोपकार का उपदेश देकर स्वस्थ्य, समरस, समतामूलक और सहिष्णु समाज बनाने के लिए अद्वितीय प्रयास किया। इस दौर के ईर्ष्या द्वेष घृणा हिंसा और प्रतिहिंसा पर आधारित समाज में महात्मा बुद्ध का सत्य अहिंसा और करूणा का विचार आज भी प्रासंगिक है। महात्मा बुद्ध के व्यक्तित्व और विचारों को हम जितना ही गहराई से समझने का प्रयास करते उतना ही हम हिंसा मुक्त बेहतर समाज बनाने का प्रयास करते हैं। जर्मनी के दो दार्शनिकों नीत्शे और शोपेनहाॅवर ने महात्मा बुद्ध को पृथ्वी का महामनव कहा था। इस महामनव के विचारों को आत्मसात कर ही सम्पूर्ण वैश्विक मानव समाज अमन, शान्ति के साथ तरक्की कर सकता हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *