वरना ,आज मणिपुर जल रहा है कल कोई और जलेगा

रवीन्द्र वाजपेयी :- पूर्वोत्तर भारत का मणिपुर राज्य अपनी सांस्कृतिक धरोहर के साथ ही प्राकृतिक सौदंर्य के लिए भी प्रसिद्ध है नगालैंड और मिजोरम की अपेक्षा इसे राष्ट्रीय मुख्यधारा के ज्यादा करीब माना जाता है बीते अनेक वर्षों से यहाँ शांति के साथ ही राजनीतिक स्थिरता बनी हुई थी लेकिन अचानक यह राज्य धधक उठा और कारण बना यहाँ के बहुसंख्यक मैतेई समुदाय को उच्च न्यायलय द्वारा अनु.जनजाति का दर्जा दिए जाने का फैसला

इस बारे में जो अधिकृत जानकारी उपलब्ध है उसके मुताबिक मैतेई समुदाय अंग्रेजी राज में भी जनजातीय वर्ग में शामिल था आजादी के बाद वह व्यवस्था बदल गयी उच्च न्यायालय के आदेश से राज्य में रहने वाले नगा – कुकी समुदाय के लोग गुस्से में हैं इसका एक कारण ये भी है कि इनको राज्य में घुसपैठिया मानकर बाहर करने का आदेश मुख्यमंत्री बीते साल ही दे चुके थे नगा – कुकी समुदाय में ईसाई धर्म को मानने वाले ज्यादा हैं जबकि मैतेई वर्ग हिन्दू धर्म को मानता है मणिपुर में कृष्ण भक्ति भी काफी की जाती है

जनसँख्या और सामाजिक प्रभाव के तौर पर मैतेई समुदाय काफी मजबूत है और राजनीतिक तौर पर प्रभुत्व संपन्न भी इसलिए मौजूदा संकट के पीछे ईसाई मिशनरियों की भूमिका से भी इंकार नहीं किया जा सकता क्योंकि उत्तर पूर्वी राज्यों में अलगाववाद को बढ़ावा देने में उनकी भूमिका पहले भी उजागर होती रही है और यही वजह रही कि इस समूचे क्षेत्र को मुख्यधारा से उस तरह नहीं जोड़ा जा सका जैसी अपेक्षा और आवश्यकता थी ये कहना गलत न होगा कि 2014 में जबसे नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने तबसे केंद्र सरकार की कार्य सूची में पूर्वोत्तर की ओर काफी ध्यान दिया जाने लगा अधो संरचना का जितना विकास बीते 9 वर्षों में वहां किया गया, वह चमत्कृत करता है और उसी का परिणाम है कि त्रिपुरा जैसे वामपंथियों के गढ़ में लगातार दूसरी बार भाजपा अपनी सरकार बनाने में कामयाब हुई यही स्थिति मणिपुर की भी है

इन सबकी वजह से पूर्वोत्तर के राज्यों में फैला अलगाववाद भी कम हुआ है और सशस्त्र संघर्ष करने वाले अनेक संगठनों ने समझौते के जरिये शांति के रास्ते पर चलने का फैसला किया लेकिन देश विरोधी ताकतें पूरी तरह खत्म नहीं हुईं हैं मणिपुर की ताजी घटना उसका प्रमाण है यदि ये राजनीतिक निर्णय होता तब बात कुछ और होती किन्तु जब उच्च न्यायालय ने मैतेई समुदाय को ऐतिहसिक साक्ष्य के आधार पर जनजातीय समूह मानते हुए अनु. जनजाति का दर्जा देने का फैसला सुनाया तब नगा और कुकी वर्ग उसके विरुद्ध अपील करने स्वतंत्र था परन्तु बजाय इसके मणिपुर जैसे शांत राज्य को अशांति और हिंसा की आग में झोक दिया गया पूर्वोत्तर के राज्य सीमावर्ती होने से वैसे भी राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से बेहद सम्वेदनशील हैं विदेशी घुसपैठ होने से यहाँ का जनसँख्या संतुलन लगातार गड़बड़ा रहा है | चूंकि भौगोलिक तौर पर भी यहाँ जंगली और पहाड़ी क्षेत्र की प्रचुरता है इसलिए घुसपैठ रोकना काफी कठिन होता है | उस वजह से एक राज्य की कबीलाई जातियां दूसरे में घुसपैठ करते हुए जंगलों में कब्जा करने में जुटी रहती हैं जिसकी वजह से जातीय संघर्ष होते रहते हैं |

वर्तमान विवाद के पीछे भी नगा और कुकी समुदाय द्वारा मणिपुर के वन क्षेत्र में अवैध रूप से की गई घुसपैठ वजह हो सकती है किन्तु मैतेई समुदाय को जनजातीय दर्जा दिए जाने के उच्च न्यायालय के फैसले को बहाना बनाकर हिंसा फैला देने के पीछे धर्मांतरण कर पूर्वोत्तर में अस्थिरता फ़ैलाने और चुनावी राजनीति में मात खा चुके लोग भी हो सकते हैं | केंद्र और राज्य सरकार शांति स्थापित करने की कोशिश कर रही हैं | लेकिन विवाद ऐसे समय उत्पन्न हुआ जब देश में जातीय जनगणना राजनीतिक हथियार के तौर पर इस्तेमाल की जा रही है | बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने तो इसकी जिद ही पकड़ ली किन्तु उच्च न्यायालय ने उस पर रोक लगा दी |

अब चूंकि मणिपुर में उच्च न्यायालय के आदेश के विरुद्ध हिंसा भड़क उठी तो देश के अन्य राज्यों में भी आरक्षण संबंधी जितने भी मामले अदालतों के समक्ष विचाराधीन हैं उन पर होने वाले फैसलों से नाराज वर्ग कानून व्यवस्था की धज्जियां उड़ाने में लग जाएगा और वोटों के सौदागर बजाय बुझाने के आग में घी डालने से बाज नहीं आयेंगे | आरक्षण निश्चित रूप से समाज के वंचित वर्ग के सामाजिक और आर्थिक उत्थान का जरिया है | लेकिन पूर्वोत्तर राज्यों की ज्यादातर जनसँख्या जनजातीय वर्ग की होने से वहां आरक्षण के मौजूदा ढर्रे से अलग हटकर कुछ करने की जरूरत थी | जिसकी तरफ वर्तमान केंद्र सरकार ने ध्यान दिया और उसके सुखद परिणाम भी आने लगे | लेकिन देश को अस्थिर करने वाले तत्वों को ये रास नहीं आ रहा इसलिए मौक़ा पाते ही वे गड़बड़ करने की कोशिश करते हैं| मणिपुर के अलावा भी निकटवर्ती अन्य राज्यों में इस तरह के संघर्ष समय – समय पर होते रहते हैं जिनके लिए सीमा पार से भी मदद मिलती है |

बीते कुछ सालों में पूर्वोत्तर में राष्ट्रवादी राजनीति के पैर मजबूती से जमने के कारण धर्मांतरण के जरिये राष्ट्रविरोधी गतिविधियों को प्रोत्साहित करने की प्रक्रिया पर नियन्त्रण हुआ है और विदेशी धन से समूचे पूर्वोत्तर को भारत से अलग करने का षडयंत्र कमजोर हो रहा है | इसीलिए बौखलाहट में यहाँ की शान्ति भंग करने के लिए इस तरह के प्रपंच रचे जा रहे हैं | केंद्र सरकार को चाहिए इस घटना के असली कारणों का पर्दाफाश करते हुए उसके लिए जिम्मेदार ताकतों के मंसूबे विफल करे क्योंकि पूर्वोत्तर के किसी भी राज्य में होने वाली हिंसा से राष्ट्रीय सुरक्षा खतरे में पड़ती है |

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