“बदलते समय में बदलती आपसी “पत्रकारों” की कलम की रुख बिखर रहे पत्रकार”

कभी समय था जब पत्रकारों की एकता को देख कर बड़े बड़े धुरंधर पत्रकारों से टकराने से घबराते थे।

एक पत्रकार को कोई समस्या होती थी तो फिल्ड में काम करने वाले सभी पत्रकार एक जुट होकर उस पत्रकार की समस्याओं का समाधान ढूंढ कर दम लेते थे।

सरकार गिरा देने तक की छमता रखते थे जिससे समाज में लोग पत्रकारों को सम्मानित करके उनका हौसला बुलंद करते थे।

उस समय प्रिंट मीडिया इलेक्ट्रॉनिक मीडिया डिजिटल मीडिया का हवाला देकर एक दुसरे को नीचा दिखाने का काम नहीं करते थे न कोई बड़ा न कोई छोटा का भेदभाव रखते थे आपसी मनमुटाव हो भी जाता था तो अपनी आपसी सुलह कर लेते थे समाज में बात नहीं पहुंचती थी।

लेकिन आज ऐसा नहीं है एक दुसरे की बुराई करना बड़ा छोटा का भेदभाव रखना किसी की लेखनी अच्छी है तो उससे जलन रखना किसी की अच्छी पकड़ है उसका हर जगह इज्ज़त सम्मान होता है तो उसका भी जलन रखना चौकी प्रभारी थाना प्रभारी से लेकर अधिकारी तक से अगले की बुराई करके अपने आप को सर्वश्रेष्ठ साबित करना आम बात हो गई है।

जिससे अब लोग पत्रकारों को एक अलग नज़र से देखने लगे है अब जल्दी किसी ख़बर का असर इस लिए नहीं होता क्योंकि अब एक दुसरे के खबरों को खंडन करने लगे हैं।

इसी तरह सब कुछ चलता रहा तो आने वाले समय में बदलते समय में पत्रकारिता अपनी अहमियत को खो देगा और जमीन स्तर पर काम करने वाले पत्रकार को इसका खमियाजा तो भुगतान ही पड़ेगा साथ ही देश को भी नुक्सान होगा देश की जनता को भी सही सटीक सच्ची ख़बर देखने को नहीं मिलेगी।

इस लिए पत्रकारिता को बचाने के लिए चौथे स्तम्भ को मजबूत बनाये रखने के लिए पत्रकारों को अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी आपसी रंजिश खत्म करना होगा साथ ही कंधे से कंधा मिलाकर राष्ट्रवादी बन कर देश हित के लिए पत्रकारिता करनी होगी।

स्वतंत्र पत्रकार अटल बिहारी शर्मा लखनऊ?

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