आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के बूते चुनावी चक्रव्यूह….

पुष्परंजन

इस साल चार विधानसभाओं के चुनाव, और 2024 में लोकसभा के साथ-साथ बाक़ी तीन राज्यों में चुनाव क्या उन्हीं परंपरागत पैटर्न पर लड़े जाएंगे, जिनकी रणनीति भारत की सर्वे कंपनियों की सूचनाओं के आधार पर तय होती रही हैं? यह बदलेगा। सत्ता पक्ष अगले चुनावों में अपना मुंह कर्नाटक की तरह जलाना नहीं चाहता। चुनांचे, दुनिया के उन देशों से संपर्क साधने की कोशिश हो रही है, जहां आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के माध्यम से मतदाताओं के मिज़ाज को जानने में सटीक सफलता मिली है।

प्रधानमंत्री मोदी अगले माह 22 जून को वाशिंगटन व्हाइटहाउस में डिनर पर आमंत्रित हैं। समझा जाता है कि उनकी इस यात्रा के दौरान कुछ अमेरिकी और इज़राइली हाईटेक कंपनियां, जो आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआई) के ज़रिये सर्वे कराकर चुनावी रणनीतिकारों को जानकारी बेचती हैं, वो टीम मोदी से संपर्क साधे। आधिकारिक रूप से सत्ता के गलियारों में बैठे चंद लोग इस सवाल पर खामोशी साधे हुए हैं, मगर इतना ज़रूर इशारा हुआ कि अगले चुनाव में रणनीति के स्तर पर भारी बदलाव सोच लिया गया है, जिसमें इलेक्ट्रोनिक माध्यम भी शामिल है।

अमेरिका में आम चुनाव नवंबर 2024 में है। उससे बहुत पहले भारत में लोकसभा चुनाव हो जाना है। अमेरिकी मतदाताओं के मिज़ाज को भांपने में पिछले चुनावों में जिस तरह आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का इस्तेमाल हुआ, उसे 98 से 100 फीसदी सटीक माना गया था। राष्ट्रपति जो बाइडेन इस बात भी चिंतित हैं कि प्रतिपक्ष कहीं आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस कंपनियों का दुरूपयोग न करे। 3 मई 2023 को राष्ट्रपति जो बाइडेन ने दुनिया के दिग्गज आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस कंपनियों के टॉप सीईओ के साथ बैठक की थी, और यह सुनिश्चित करने को कहा गया कि नागरिकों के निजी डाटा का दुरूपयोग नहीं किया जाएगा।

जो बाइडन के साथ इस बैठक में गूगल के सीईओ सुंदर पिचाई, माइक्रो सॉफ्ट के सत्या नडेला, ओपेन एआई के सीईओ सैम अल्टमन्न उपस्थित थे। इनसे यह सुनिश्चित करने को कहा गया कि आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस वाले जो प्रोडक्ट बाज़ार में उतार रहे हैं, वह सुरक्षित होंगे, लोगों की निजता और सिविल राइट्स का हनन नहीं करेंगे। इस बैठक के हवाले से उप राष्ट्रपति कमला हैरिस ने भी बयान दिया था कि प्राइवेट सेक्टर की कंपनियों की नैतिक और क़ानून सम्मत जिम्मेदारी बनती है कि वो अपने प्रोडक्ट का दुरूपयोग किसी भी हालत में होने न दें।

अमेरिका में 2008 और 2012 के चुनावों को फेसबुक अकांउट्स के ज़रिये लड़ा गया था। उन दिनों किसी मुद्दे पर फेसबुक यूजर्स की प्रतिक्रियाओं के बिना पर चुनावी सर्वे कंपनियां अपने क्लाइंट्स को डाटा उपलब्ध करा देती थीं। मगर, पिछले दो चुनावों से अमेरिका में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस की बड़ी भूमिका दीखने लगी है। अमेरिकी सॉफ्टवेयर कंपनी ‘एक्सपर्ट डॉट एआई‘ ने 2020 के चुनाव में घमाल मचा दिया था, जिसके डाटा सटीक उतरे थे। 2020 चुनाव से पहले ‘एक्सपर्ट डॉट एआई‘ ने सोशल मीडिया के तमाम पोस्ट को खंगालने में एआई सॉफ्टवेयर की मदद ली थी। जो बाइडेन जीत रहे हैं, उसकी थाह सोशल मीडिया में चल रही हलचलों से पता चल चुका था।

लेकिन चार वर्षों में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस तकनीक ने उन तिजोरियों थाह भी लेनी शुरू की है, जिनसे चुनावों में आर्थिक मदद मिलने की संभावना है। जो बाइडेन की चिंता इस बात की है कि ट्रंप की रिपब्लिकन पार्टी इसी तकनीक के सहारे चुनावी चंदे को बड़े स्तर पर जुटाने में डेमोक्रेट्स से आगे न निकल जाएं। सॉफ्टवेयर कंपनियों के सीईओ की बैठक के पीछे राष्ट्रपति जो बाइडेन की यही मंशा थी कि आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के ज़रिये वो डाटा उनके विरोधियों को नहीं हासिल हो जाएं, जिससे चुनावी बाज़ी एकदम से पलट जाए।

अप्रैल 2023 में बोस्टन स्थित इमर्सन कॉलेज सर्वे में एक जानकारी दी कि 43 फीसद अमेरिकन जो बाइडेन को पसंद करते हैं, 41 प्रतिशत ट्रंप को। 10 फीसद किसी और चेहरे की उम्मीद कर रहे हैं। बचे छह प्रतिशत लोग यह तय नहीं कर पा रहे कि 2024 के चुनाव में उन्हें क्या करना चाहिए। इमर्सन कॉलेज सर्वे, ‘अमेरिकन एसोसिएशन ऑफ पब्लिक रिसर्च‘ की अनुषंगी इकाई है। पिछले चुनाव में इसकी भविष्यवाणी 93 प्रतिशत सही उतरी थी।

लेकिन, आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस सटीक जानकारी के साथ-साथ सूचनाओं को गुमराह भी कर सकता है, इसकी आशंका इज़राइली एक्सपर्ट व्यक्त करते हैं। हिब्रू भाषा का अखबार ‘इज़राइल हेयोम‘ ने 14 मई 2023 की एक रिपोर्ट में जानकारी दी है, कि आम लोगों को गुमराह करने के वास्ते आवाज़ समेत व्यक्ति विशेष का क्लोन ‘एआई’ के ज़रिये तैयार कर चुनावी दुष्प्रचार का ब्रह्मास्त्र बना लिया गया है। आप पुष्टि करते रहिए कि बयान फेक है, या सही, तबतक लाखों-करोड़ों लोग इसके दुष्प्रभाव की चपेट में आ चुके होते हैं। दरअसल, आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस आने वाले चुनावों का साइबर शैतान है, जिसकी मायावी चालों का शिकार आम मतदाता हो सकता है। तो क्या भारत में जो आगामी चुनाव होंगे, उसमें आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस जैसे मायावी दानव का इस्तेमाल होगा?

अब तो मानकर चलिये कि भारतीय चुनावों में सौ-हज़ार लोगों के सैंपल साइज वाले सर्वे और एक्ज़िट पोल के दिन लदने वाले हैं। एक्जिट पोल की शुरूआत 1967 में हुई थी। मार्शल वान डैम, नीदरलैंड में डच लेबर पार्टी के नेता थे, और 1981 से 82 तक हाउसिंग, योजना व पर्यावरण विभागों के मंत्री रह चुके थे। राजनीति में सक्रिय होने से पहले मार्शल वान डैम का टीवी प्रेजेंटर के रूप में अच्छा रूसूख था। 15 फरवरी, 1967 के आम चुनाव में एक्ज़िट पोल का सबसे पहला प्रयोग मार्शल वान डैम ने किया था। उसी साल नवंबर में अमेरिका के केंटुकी में चुनाव हुआ, वारेन मिटोफ्स्की उस दौर के पोल स्टार थे, जिन्होंने सीबीएस न्यूज़ पर इस विधा का इस्तेमाल किया।

यूरोप-अमेरिका में चार दशक पहले हुए प्रयोग ने आज ऐसे कनखजूरे का रूप धारण कर लिया है, जिसकी सहस्त्र टांगें होती हैं। ओपिनियन पोल के दुरूपयोग को देखते हुए यूरोपीय संघ के 16 देशों में नकेल कसी गई है। इटली, स्लोवाकिया, लक्जमबर्ग ने चुनावी सर्वे पर सात दिन पहले से रोक लगा रखी है। फ्रांस, ब्रिटेन और जर्मनी में मतदान से पहले किसी ने एक्जिट पोल दिखाने की ज़ुर्रत की, तो उसपर आपराधिक मुकदमें चलाये जाते हैं।

यूरोपीय संसद में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के सुरक्षित इस्तेमाल पर 11 मई 2023 को एक क़ानून बना है। यूरोपीय देश इस क़ानून के बाद कैसे एआई का चुनावी इस्तेमाल करते हैं, इसे देखने के लिए थोडे़ दिन इंतज़ार करना होगा। भारत में साढ़े छह अरब डॉलर का आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस मार्केट है। जिस दिन चुनाव के वास्ते इसका इस्तेमाल होने लगेगा, समझिए उसे डबल नहीं, ट्रिपल बूस्टर डोज मिल जाएगा।

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